Wednesday, August 11, 2010

१५ अगस्त - छुट्टी है आज

आज १५ अगस्त है और पूरा ऑफिस दुखी है की इस बार इतवार को १५ अगस्त है और उनकी १ छुट्टी कम हो गयी। 'यार ये १५ अगस्त को भी इस बार इतवार को ही आना था , बड़ी मुश्किल से तो एक छुट्टी आती है वोह भी मर गयी। ' हमारा एक कर्मचारी दुसरे से बोला। दूसरा भी गुस्से में बुदबुदाता हुआ कमरे से बाहर चला गया। काश ! हम अंग्रेजों से १६ अगस्त को आजादी ले लेते, मैंने भी एक बार मन में सोचा , तभी मनं ने गाली दी - उच्च कोटि के नीच इंसान - मैंने आँखें झपकी और आजादी के लिए संघर्ष किये शहीदों से शर्मनाक सोच के लिए माफ़ी मांगी।

१५ अगस्त - आज इसका मायना कितना बदल गया है - आज स्वतंत्र दिवस को छुटी के रूप में याद किया जा रहा है। आइये देखें की स्वतन्त्र भारत कितना बदल गया है।

सबसे पहले मैं उन शहीदों को याद करना चाहूँगा जिसकी बदोलत हमें आज़ादी मिली। अफ़सोस की बात यह है की आज गांधी जी हमें सिर्फ हरे - हरे नोटों पर और सरकारी कार्यालयों की दीवारों पर मिलते हैं तो भगत सिंह और राजगुरु जैसे नाम अब शहरों , पार्कों और बस अड्डों के आगे लगे मिलते हें- भगत सिंह पार्क, राजगुरु नगर, शास्त्री चौक आदि। २ अक्टूबर को दूरदर्शन फिल्म ' गांधी' को चित्रित करना नहीं भूलता पर निजी चैनलों के चलते हम उसका दूर से दर्शन भी नहीं करतेदेश का सबसे इमानदार प्रधानमंत्री - स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री जी को उस दिन भी याद किया ही नहीं जाता या फिर औपचारिका पूरी कर दी जाती है।

हमारे देश के नेता अभी भी एक काम को हमेशा याद रखते हैं - वो है चोंको और पार्कों पर लगे शाहेदों के बुतों पर माला पहनानाऔर झंडा लहराना। भाषण वही होता है , भीड़ के नाम पर गरीब जनता को दाल रोटी के नाम पर बिठाया होता है और शहीदों के साथ नेता जी की भी जय जय कार हो रही होती है। परम हिंसावादी नेता ही अहिंसावादी गांधी जी की मूर्ति का अनावरण कर रहा होता है। नेता किताब का विमोचन कर रहा होता है और स्वतन्त्र भारत की व्याख्या इस तरह कर रहा होता है की अगर वो उसका १०% भी अपनी पांचवी की कक्षा में लिख देता तो अपनी इज्ज़त तब बचा ही लेता।

सीमा पर तैनात जवान के पास हथियार तो है पर उसे मालूम नहीं की उसमे से गोली चलेगी के नहीं। पोलिसे बल के पास रक्षा कवच तो है पर मालूम नहीं की वो गोली रोक भी सकेगी के नहीं। गाँव में स्कूल तो हैं पर पीपल के पेड़ के नीचे। लाखों लोग भूख से मर रहे हैं और अनाज गोदामों में खराब हो रहा है। खाने पीने के दाम आसमान छु रहे हैं और किसान अभी भी आतमहत्या कर रहे है। बिजली और पानी कई गाँव का अभी भी सपना है। खिलाडी तो है पर खेलने के लिए जूते नहीं है। हाकी तो है पर मैदान नहीं है। अंग्रेजी हमें बोलनी नहीं आती और हिंदी हम बोलना नहीं चाहते।

पेड़ों की अभी भी पूजा होती है। मंत्री जी चुनाव जीतने के लिए हवन करते हैं, देश की क्रिकेट टीम का कप्तान जीत के लिए बकरी की बलि देता है और ब्लॉग का लेखक कुत्तों को गुलाब जामुन खिल रहा है। पंडित और पुजारी के पास लाइन लगी है और तोत्ता पत्ता निकाल कर भविष्य बता रहा है।

भविष्य तो उज्वल है पर रास्ता काफी कठिन है। हमें अपनी जिमेवारी खुद समझनी पड़ेगी और भारत को सही दिशा में ले जाने के लिए सहयोग देना होगा। सरकार और विपक्ष के खेल में कही भारत खो ना जाये।

जय हिंद।

2 comments:

  1. समय यूं ही चलता रहता है. आशा रखनी चाहिये कि सब मंगलमय ही होगा.

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  2. उम्मीद जगाये रखें.


    स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आप एवं आपके परिवार का हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ.

    सादर

    समीर लाल

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