Tomato Ketchup
Saturday, November 27, 2010
तू तू मैं मैं.......
मैं बुद्धिमान
मैं धनवान
मैं बलवान
मैं दयालु
मैं दानवीर
मैं भक्त
मैं भला
तू चालाक
तू चोर
तू बईमान
तू कंजूस
तू अपराधी
तू गलत
तू बेवकूफ
तू तू मैं मैं.......
Saturday, September 4, 2010
क़ुतुब मीनार आज भी खड़ा है...
क़ुतुब मीनार आज भी खड़ा है...
कई राजा बनते उतरते देखे होंगे।
कई दरबार लगते देखे होंगे।
कई घोड़ों की टापेंसुनी होगी।
कई जशनमेले देखे होंगे ।
कई दीये जलते बुझते देखे होंगे।
क़ुतुब मीनार ने सब कुछ देखा,
सब ने आँखें बंद कर मीनार को देखा ।
क़ुतुब मीनार आज भी खड़ा है......
Wednesday, August 11, 2010
१५ अगस्त - छुट्टी है आज
१५ अगस्त - आज इसका मायना कितना बदल गया है - आज स्वतंत्र दिवस को छुटी के रूप में याद किया जा रहा है। आइये देखें की स्वतन्त्र भारत कितना बदल गया है।
सबसे पहले मैं उन शहीदों को याद करना चाहूँगा जिसकी बदोलत हमें आज़ादी मिली। अफ़सोस की बात यह है की आज गांधी जी हमें सिर्फ हरे - हरे नोटों पर और सरकारी कार्यालयों की दीवारों पर मिलते हैं तो भगत सिंह और राजगुरु जैसे नाम अब शहरों , पार्कों और बस अड्डों के आगे लगे मिलते हें- भगत सिंह पार्क, राजगुरु नगर, शास्त्री चौक आदि। २ अक्टूबर को दूरदर्शन फिल्म ' गांधी' को चित्रित करना नहीं भूलता पर निजी चैनलों के चलते हम उसका दूर से दर्शन भी नहीं करतेदेश का सबसे इमानदार प्रधानमंत्री - स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री जी को उस दिन भी याद किया ही नहीं जाता या फिर औपचारिका पूरी कर दी जाती है।
हमारे देश के नेता अभी भी एक काम को हमेशा याद रखते हैं - वो है चोंको और पार्कों पर लगे शाहेदों के बुतों पर माला पहनानाऔर झंडा लहराना। भाषण वही होता है , भीड़ के नाम पर गरीब जनता को दाल रोटी के नाम पर बिठाया होता है और शहीदों के साथ नेता जी की भी जय जय कार हो रही होती है। परम हिंसावादी नेता ही अहिंसावादी गांधी जी की मूर्ति का अनावरण कर रहा होता है। नेता किताब का विमोचन कर रहा होता है और स्वतन्त्र भारत की व्याख्या इस तरह कर रहा होता है की अगर वो उसका १०% भी अपनी पांचवी की कक्षा में लिख देता तो अपनी इज्ज़त तब बचा ही लेता।
सीमा पर तैनात जवान के पास हथियार तो है पर उसे मालूम नहीं की उसमे से गोली चलेगी के नहीं। पोलिसे बल के पास रक्षा कवच तो है पर मालूम नहीं की वो गोली रोक भी सकेगी के नहीं। गाँव में स्कूल तो हैं पर पीपल के पेड़ के नीचे। लाखों लोग भूख से मर रहे हैं और अनाज गोदामों में खराब हो रहा है। खाने पीने के दाम आसमान छु रहे हैं और किसान अभी भी आतमहत्या कर रहे है। बिजली और पानी कई गाँव का अभी भी सपना है। खिलाडी तो है पर खेलने के लिए जूते नहीं है। हाकी तो है पर मैदान नहीं है। अंग्रेजी हमें बोलनी नहीं आती और हिंदी हम बोलना नहीं चाहते।
पेड़ों की अभी भी पूजा होती है। मंत्री जी चुनाव जीतने के लिए हवन करते हैं, देश की क्रिकेट टीम का कप्तान जीत के लिए बकरी की बलि देता है और ब्लॉग का लेखक कुत्तों को गुलाब जामुन खिल रहा है। पंडित और पुजारी के पास लाइन लगी है और तोत्ता पत्ता निकाल कर भविष्य बता रहा है।
भविष्य तो उज्वल है पर रास्ता काफी कठिन है। हमें अपनी जिमेवारी खुद समझनी पड़ेगी और भारत को सही दिशा में ले जाने के लिए सहयोग देना होगा। सरकार और विपक्ष के खेल में कही भारत खो ना जाये।
जय हिंद।
Saturday, August 7, 2010
साधारण किराये में असाधारण यात्रा
बस के भीतर जाते ही मेरी नज़रें खिड़की वाली सीट तलाश करने लगी और जल्द ही मैंने सफलता प्राप्त कर ली। बैठते ही तीन वाक्यों ने मेरा ध्यान खींचा - १ सवारी अपने सामान की खुद जिमेवार है - मैं बिना किसी बैग के था लेकिन मैंने अपने मोबाइल को दो-तीन बार अलग -अलग तरीकों से रखने की सोची। मैं ४ महीने पहले ही एक मोबाइल खो चूका था और इस बार पूरी सावधानी बरतना चाहता था। २ बिना टिकेट पाए जाने पर आपको कैद भी हो सकता है - मैंने अपने बटुए को चेक किया और पैसे निकाल कर अपनी कमीज़ की जेब में रख लिए। ३ वाहेगुरु - यह चालक की खिड़की के पास बड़े बड़े शब्दों में लिखा हुआ था। मैंने इश्वर से शुभ यात्रा की दुआ की हालाँकि इस वाक्य का अर्थ मुझे कुछ देर बाद पता चला।
टिकेट कट गयी थी , आज भी टिकेट चेकर के पास छुट्टे पैसे की कमी होती है और मेरी टिकेट पर बकाया लिख कर वो आगे बढ़ गया। मेरी साथ वाली सीट पर दो लड़के आकर बैठ गए थे।पहला वाक्य मेरे दिमाग में फिर से कोंध गया। मैंने अपने मोबाइल को फिर से चेक किया और उन दोनों लड़कों के हुलिए को देखने लगा।बस जी टी रोड पर पहुँच गयी थी और बस की रफ़्तार देख कर मुझे वाहेगुरु का भी अर्थ समझ में आने लग गया था। कुछ यात्री सच में वाहेगुरु वाहेगुरु बोल रहे थे। मेरे ख्याल से यह हालत बस के अन्दर ही नहीं बल्कि बाहर चल रहे वाहनों की भी होगी। टिकेट चेकर मेरे पैसे वापिस कर गया था। नॉन स्टॉप बस का अर्थ अब सपष्ट होने लगा था - वो बस जो स्टॉप और नॉन स्टॉप को अनदेखा करते हुए हर जगह रुके।
मानसून होने के कारण बाहर ठंडी -ठंडी हवा चल रही थी और सूरज ने अभी दस्तक नहीं दी थी। ज्यादा तर लोग अपनी नींद पूरी कर रहे थे। मैं भी नींद की आगोश में चला गया था। तभी थोड़ी देर में मेरे कानो में चाय -चाय की आवाज़ पड़ी ,हमारी बस एक ढाबे पर रुकी हुई थी। कुछ लोग चाय का लुत्फ उठा रहे थे तो ड्राईवर और टिकेट चेकर सरकारी रोटी का भरपूर आनंद उठा रहे थे। ढाबे की मेज़ पर कौए और चिड़िया भी हमारा साथ दे रही थी। मख्हियाँ भी चाय और बिस्कुट का भरपूर आनंदउठा रही थी। कुत्ते मेज़ के पास इस टाक में थे की कोई उन्हें कुछ खाने के लिए देदे। चाय के साथ हिंदी की अखबार का कुछ और ही मज़ा होता है। कुछ देर बाद बस ने फिर होर्न दिया और हमारी बस सड़क पर हवा से बातें करने लगी।
सूरज ने दुस्तक दे दी थी और लोग भी हलचल करने लगे थे। अखबार की खबरें चर्चा का विषय - रिश्वतखोरी, बेरोज़गारी, महंगाई, सरकार और पुलिस की नाकामी। ऐसा लग रहा था की राजनीति और अर्थशास्त्र के विद्वान मेरी बस में ही यात्रा कर रहे थे। साथ बैठा लड़का राहुल द्रविड़ को बल्लेबाजी के गुर बता रहे था । आकर्षण का केंद्र बिंदु बनी लड़की टाटा डोकोमो के प्लान का फायदा उठा रही थी। पहले वाक्य का असर अभी भी था और मोबाइल का स्थान एक जेब से दूसरी जेब में बदला जा रहा था।
हमारी बस बसस्टैंड पहुँच गयी थई और साधारण किराये में असाधारण यात्रा की समाप्ति हो गयी।
Monday, July 12, 2010
10/10
My first day in hostel and I found tears in the eyes of my grandfather who had come to drop me at Mumbai by looking at the typical hostel room and broom in the hands of mother of my friend Mathew. My roommates Naqvi Brothers, Mathew and Sunil Shah Alias Gupta,were all superstars in their own way (I have to become Chetan Bhagat to describe all in full masala mode so will talk about them some other day). We needed each other in the city of dreams and gelled well.
My first day in the college and I was counting the no. of girls in my class, not surprisingly, this was the first time that I was in co-ed. I was totally uncomfortable finding myself in English speaking hap and so called cool culture. Suddenly the boys became Guys and the Girls became Gals and friends became buddies. My first presentation and I was just like Inzmam –ul – Haq giving an interview at BBC. I survived the First month. My friend Mathew realised my potential and helped me in making friends. This group helped me a lot. Thanks buddies!!!!! This was the first step and thereafter I was shocked to see some amazing encouragement from Hi – fi group. I got the support and love from every batch mate however my reciprocation to them never came up in open due to my shyness. I would like to thank all.
My first crush, then second then ......nth , Some beautiful love stories, Bandstand’s PDA (Public Display of Affection) , Local Trains were some other exciting things during that period (Reminding me of the Song- Those were the best days of my life-Summer of 69).
I want to give these 10 years 10/10. Lets move forward towards another 10 years of association......”Pude Chala Pude” (Marathi word - means - Move Forward).
Cheers!!!!!!!!!!!!!!!!!
Thursday, June 24, 2010
"Chochi"
Uh vi ki din hunde si
Jadon main roti nu chochi kehnda si......
Jadon apne papa de doule sab to vade hunde si
Jadon mummy de alloo de paranthe fast food to vi swad hunde si
Jadon mummy da laad hi swere jganda sai
Jadon mummy di lori te kahaniyan hi chain di neend dendiyan si
Jadon papa da scooter hi sab to wadhiya jhoota hunda si
Jadon main roti nu chochi kehnda si...
Jadon jhooth bolna paap hunda si
Jadon toffee da lalach hunda si
Jadon rishta katti naal khatam te abba nal jud janda si
Jadon jittan da matlab lukkan mitti hunda si
Jadon bhagwan ji di jai hundi si
Jadon dosti jaan to pyari hundi si
Jadon koi dushman nai hunda si
Jadon sapna film de hero banan da hunda si
Jadon mehngai da matlab kulfi de rate hunde si
Jado nafrat da matlab peeli dal hunda si
Hai..jadon main roti nu chochi kehnda si.