Saturday, August 7, 2010

साधारण किराये में असाधारण यात्रा

दिल्ली ......दिल्ली दिल्ली .....नॉन स्टॉप दिल्ली .....बस का चालक बार बार बस को आगे पीछे कर रहा था और मेरे जैसे कई लोग उसकी इस चालाकी में आकर जल्दी से बस में चढ़ रहे थे । बस के बहार साधारण किराये को बोल्ड शब्दों में लिखा था। मैं साधारण किराये में असाधारण यात्रा करने जा रहा था।

बस के भीतर जाते ही मेरी नज़रें खिड़की वाली सीट तलाश करने लगी और जल्द ही मैंने सफलता प्राप्त कर ली। बैठते ही तीन वाक्यों ने मेरा ध्यान खींचा - १ सवारी अपने सामान की खुद जिमेवार है - मैं बिना किसी बैग के था लेकिन मैंने अपने मोबाइल को दो-तीन बार अलग -अलग तरीकों से रखने की सोची। मैं ४ महीने पहले ही एक मोबाइल खो चूका था और इस बार पूरी सावधानी बरतना चाहता था। २ बिना टिकेट पाए जाने पर आपको कैद भी हो सकता है - मैंने अपने बटुए को चेक किया और पैसे निकाल कर अपनी कमीज़ की जेब में रख लिए। ३ वाहेगुरु - यह चालक की खिड़की के पास बड़े बड़े शब्दों में लिखा हुआ था। मैंने इश्वर से शुभ यात्रा की दुआ की हालाँकि इस वाक्य का अर्थ मुझे कुछ देर बाद पता चला।

टिकेट कट गयी थी , आज भी टिकेट चेकर के पास छुट्टे पैसे की कमी होती है और मेरी टिकेट पर बकाया लिख कर वो आगे बढ़ गया। मेरी साथ वाली सीट पर दो लड़के आकर बैठ गए थे।पहला वाक्य मेरे दिमाग में फिर से कोंध गया। मैंने अपने मोबाइल को फिर से चेक किया और उन दोनों लड़कों के हुलिए को देखने लगा।बस जी टी रोड पर पहुँच गयी थी और बस की रफ़्तार देख कर मुझे वाहेगुरु का भी अर्थ समझ में आने लग गया था। कुछ यात्री सच में वाहेगुरु वाहेगुरु बोल रहे थे। मेरे ख्याल से यह हालत बस के अन्दर ही नहीं बल्कि बाहर चल रहे वाहनों की भी होगी। टिकेट चेकर मेरे पैसे वापिस कर गया था। नॉन स्टॉप बस का अर्थ अब सपष्ट होने लगा था - वो बस जो स्टॉप और नॉन स्टॉप को अनदेखा करते हुए हर जगह रुके।

मानसून होने के कारण बाहर ठंडी -ठंडी हवा चल रही थी और सूरज ने अभी दस्तक नहीं दी थी। ज्यादा तर लोग अपनी नींद पूरी कर रहे थे। मैं भी नींद की आगोश में चला गया था। तभी थोड़ी देर में मेरे कानो में चाय -चाय की आवाज़ पड़ी ,हमारी बस एक ढाबे पर रुकी हुई थी। कुछ लोग चाय का लुत्फ उठा रहे थे तो ड्राईवर और टिकेट चेकर सरकारी रोटी का भरपूर आनंद उठा रहे थे। ढाबे की मेज़ पर कौए और चिड़िया भी हमारा साथ दे रही थी। मख्हियाँ भी चाय और बिस्कुट का भरपूर आनंदउठा रही थी। कुत्ते मेज़ के पास इस टाक में थे की कोई उन्हें कुछ खाने के लिए देदे। चाय के साथ हिंदी की अखबार का कुछ और ही मज़ा होता है। कुछ देर बाद बस ने फिर होर्न दिया और हमारी बस सड़क पर हवा से बातें करने लगी।

सूरज ने दुस्तक दे दी थी और लोग भी हलचल करने लगे थे। अखबार की खबरें चर्चा का विषय - रिश्वतखोरी, बेरोज़गारी, महंगाई, सरकार और पुलिस की नाकामी। ऐसा लग रहा था की राजनीति और अर्थशास्त्र के विद्वान मेरी बस में ही यात्रा कर रहे थे। साथ बैठा लड़का राहुल द्रविड़ को बल्लेबाजी के गुर बता रहे था । आकर्षण का केंद्र बिंदु बनी लड़की टाटा डोकोमो के प्लान का फायदा उठा रही थी। पहले वाक्य का असर अभी भी था और मोबाइल का स्थान एक जेब से दूसरी जेब में बदला जा रहा था।

हमारी बस बसस्टैंड पहुँच गयी थई और साधारण किराये में असाधारण यात्रा की समाप्ति हो गयी।

4 comments:

  1. bahut khoob ......really impressed
    waiting for the next entry

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  2. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

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  3. हिंदी ब्लॉग लेखन में आपसे काफी उम्मीदें जगी हैं. इनको बनाए रखियेगा.
    http://gharkibiwi.blogspot.com/

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  4. यदि अंक देने ही होते तो मैं आपको इस व्यंग्य के लिये दस में दस देता.
    हर दूसरी पंक्ति में ठहाके लगे.
    सच में वाहे गुरु ही मालिक है. :-)

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